25 जनवरी 2013

ईश्वर कमज़ोर हो गया है ?


बड़ा आसान हो गया  है 
ईश्वर को अपराधी ठहराना  
अपनी उंगली उधर उठा देना 
ईश्वर बड़ा निरीह हो गया है आज 
वह प्रतिकार नहीं करता है 
उसके पास न किराये की पुलिस है 
और न आंसू गैस के गोले 
हम बड़ी सहजता से अपना गुस्सा 
अपने प्रवचन 
अपनी शिकायतें 
उसकी ओर उछाल देते हैं
वह जवाब तक नहीं देता 
चुपचाप सुनता और सहता है 
ईश्वर कमजोर हो गया है 
या हमें सहने के लिए 
हमें सुनने को 
कोई और नहीं बचा ?

23 जनवरी 2013

सावधान रहने का समय है !

सेनाएँ तैयार हैं
बदले हुए सेनापतियों के साथ
तलवारों में लगी जंग
बड़ी तेजी से गायब हो रही है
हाथों में उस्तरे हैं धार वाले
और
अस्तबल से पुराने घोड़े निकल पड़े हैं.

नए नारे बड़े पोस्टरों में
चस्पा हो गए हर जगह ,
वादों की लंबी  फेहरिश्त
और कुर्बानियों के स्मारक-आलेख  पढ़े जा रहे हैं
आम अवाम के लिए
मखमली गद्दों के नीचे
फांसी के तख्त तैयारशुद हैं
उनके काफ़िले बस्ती में घुस चुके हैं.

यह सावधान रहने का समय है
मौसम में अचानक
धुंध और कोहरा पसर चुका है
बादलों की गरज तेज है
अपने छाते साथ रखिये
ज़हर की बारिश का इमकान है !

21 जनवरी 2013

एक अत्याधुनिक राम-कथा !

भगवान राम आज कुछ प्रसन्न-मुद्रा में दिखाई दे रहे थे।सीता जी ने उनकी इस प्रसन्नता का कारण पूछा ,'प्रभु ! आज आपकी मुख-मुद्रा अलग सन्देश दे रही है,क्या बात है ?' राम बोले ,'देवि,आज नारद मुनि मिले थे और कह रहे थे कि हम जब से धरती-लोक से आये हैं,काफी बदलाव हो गया है।मुझे अरसे से यह बात याद आ रही थी पर स्वर्ग के काम-काज से फुरसत ही नहीं मिल रही थी।यदि आपकी इच्छा हो तो अपनी कर्मभूमि के दर्शन फिर से कर आयें !'सीता ने बिना देरी किए ही झट-से हाँ कर दी और फ़िर उन दोनों ने मानव-रूप में धरती में प्रवेश किया।


संयोग से वे दोनों जहाँ उतरे ,वह पंचवटी का इलाका था।जिस स्थान पर कभी वे पर्णकुटी में रहे थे,उस जगह अब आलीशान महल था।राम और सीता उस महल से आकृष्ट हुए बिना नहीं रह सके।सहसा उन्हें अत्याधुनिक वेशभूषा में एक स्त्री दिखाई दी।राम और सीता उसको देखते ही रह गए।वे दोनों कुछ बोल पाते कि उस स्त्री ने जोर से आवाज़ दी,'पहचाना मुझे ? मैं सूपनखा हूँ।'राम विस्मित होते हुए बोले,' सूपनखा !तुम यहाँ '? लक्ष्मण ने तो तुम्हारी नाक काट दी थी ,पर तुम तो बिलकुल ठीक-ठाक और सम्पूर्ण हो !'सूपनखा ने उत्तर दिया,'आप किस युग की बात कर रहे हैं ?यह आपका त्रेता नहीं है।इस युग में हमारी नाक कटने का कोई जोखिम नहीं है,अब तो स्लट-वॉक का ज़माना है ।यह नाक-वाक से स्त्री को भयभीत करना दरअसल आप की चाल थी जो अब कामयाब नहीं होगी।'इतना सुनकर तो राम सन्नाटे में आ गए,पर सीता से न रहा गया।उन्होंने कहा,'सूपनखा !तुम मत भूलो कि तुमने केवल कपड़े बदले हैं,आचरण अभी भी तुम्हारा वही है।तुम इस तरह मेरे स्वामी का अपमान नहीं कर सकती हो ।'तब तक राम ने अपने को सँभाल लिया था।उन्होंने कहा,'सीते ! इन्हें कहने दो क्योंकि कभी हमारे द्वारा इनको कष्ट पहुँचा था।’



राम ने शांत होकर सूपनखा से अगला सवाल किया,'अच्छा यह बताओ,तुम यहाँ किसके साथ रह रही हो? मेरे द्वारा विवाह-प्रस्ताव ठुकराने के बाद तुम्हें कोई मिला ?'सूपनखा तमककर बोली,'क्या समझते हो ? यह आपका समय नहीं है।मैं तब से कई युगों तक भटकती रही।अंतत इस कलियुग में आकर मुझे राहत मिली है ।यहाँ विवाह जैसा बंधन ज़रूरी नहीं है।हम दोनों 'लिवइन रिलेशन ' को मान्यता देते हैं।कोई किसी को पूजता नहीं है।हम जीवन भर एक-दूसरे को ढोने को अभिशप्त भी नहीं हैं।अब मैं फेसबुक पर चैटिंग करती हूँ और मेरा पार्टनर किचन में सब्जियाँ पकाता है।हम पूरी तरह आजाद हैं।मैं तो सीता से भी कहूँगी कि वह अपने साथ किये गए दमन को नहीं भूले और हमारे साथ आ जाये'.




सीता ने उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया और राम से कहा,'प्रभु ! यहाँ से जल्दी चलो,मेरा दम घुट रहा है।' राम और सीता आगे बढ़ने को तैयार ही थे कि अचानक उन्हें ताड़का नज़र आई।उनके पीछे-पीछे खर-दूषण भी आ गए।उन लोगों ने आते ही सूपनखा से सवालों की बौछार कर दी,'बहन ! ये तपस्वी इतने दिनों बाद यहाँ कैसे ? सूपनखा ने कहा,'ये हमें देखने आये थे कि हमारा सर्वनाश हो गया कि नहीं।मैं तो सीता को लेकर दुखी हूँ कि यह इनके चंगुल से कैसे छूटे ?'अब उत्तर देने की बारी सीता की थी।उन्होंने ज़रा कड़ककर कहा,'सब लोग इस तरह हमें घेरकर क्यों खड़े हो गए हैं ? मैं अपने स्वामी के साथ बहुत खुश हूँ।मुझे त्रेता में भी उनमें कोई बुराई नज़र नहीं आई थी । मैं एक राजा के परिवार में ब्याह कर आई थी,उस समय इनके साथ वनवास जाने का निर्णय मेरा था। मैं कागजी रिश्तों में विश्वास नहीं करती ।ऐसे समय में मेरे पति ने मेरा साथ दिया और मैं जंगल में इनके साथ रही।अगर मुझे इनसे कोई शिकायत होगी भी तो हमारे रिश्तों में इतनी गर्मी बची है कि आपस में बातकर समझा जा सकता है ।और हाँ,ताड़का व खर-दूषण !तुम सब यहाँ कैसे आ गए ?किसने बुलाया तुम्हें ?' उत्तर सूपनखा ने दिया, 'ताड़का को मैंने ईमेल किया था और खर-दूषण को हमारे फेसबुक-स्टेटस से पता चला।’




अब तक चुप रहे राम बोल उठे,'सीते !तुम इनसे बहस न करो.आओ यहाँ से चलते हैं।'खर-दूषण ने तड़ से जवाब दिया,'हाँ ,इसी में भलाई भी है अब आपके पास न तो दैवीय शक्ति है और न ही वानर-सेना।हमने अगर एक भी स्टेटस और लगाया तो हमारे सभी सदस्य सक्रिय हो उठेंगे।'राम ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए वहाँ से चले जाना ही उचित समझा।सूपनखा ,ताड़का और खर-दूषण ने पहली बार राम को हरा दिया था।




राम और सीता अभी कुछ ही दूर पहुँचे थे कि एक कुटिया देखकर रुक गए।वहां एक बुढ़िया चारपाई पर बैठी दाल-चावल में पड़े कंकड़ बीन रही थी।राम को देखते ही पहचान गई और उठकर बोली,'प्रभु ! इतने दिनों बाद आपको पाकर धन्य हो गई। आपने मेरे जूठे बेर खाकर बहुत पहले मुझे कृतार्थ किया था।'राम इस जंगल में अचानक शबरी को पाकर प्रफुल्लित हो गए और गले लगा लिया।सीता भी शबरी से मिलकर बहुत खुश हुईं।शबरी ने कहा,'अभी मैंने खिचड़ी पकाई है,यदि आप बुरा न मानें...' ,राम ने बात बीच में ही काटकर कहा,'हम दोनों खाकर ही जायेंगे।'




खिचड़ी खाकर जैसे ही राम जाने को तैयार हुए,एक बुजुर्ग उनके पैरों पर गिर पड़े।शबरी ने बताया ,'प्रभु ! ये तुलसी हैं।इन्होंने आप पर कथा लिखकर बड़ा कष्ट भोगा है।कई लोग इनकी जान के पीछे पड़े हैं,सो मैंने इन्हें शरण दे रखी है।‘राम ने तुलसी को उठाकर गले से लगाया और कहा,'अब आप नए सिरे से राम-कथा लिखें।पिछली कथा अब इस युग में प्रासंगिक नहीं रह गई है।'तुलसी ने भाव-विह्वल होते हुए उत्तर दिया ,'भगवन ! मैंने जो भी लिखा था,भक्तिभाव से लिखा था।मुझे क्या पता था कि कालांतर में लोग मानस में भी जाति ,धर्म और लिंग का चश्मा लगाकर देखेंगे।अब मैं कोई कथा नहीं लिख सकूँगा।'



इसके बाद राम और सीता ने धरती पर ठहरना उचित नहीं समझा और बिना अतिरिक्त क्षण गँवाए वे दोनों स्वर्गलोक लौट गए !
















व्यंग्य यात्रा के अक्टूबर-दिसम्बर २०१२ के अंक में प्रकशित

19 जनवरी 2013

सरसों और चना !


बलखाती सरसों
अलमस्त चने से बोली,
'
तू हमारे कद के आसपास आ जा
फिर मेरा दिल ले जा'
चने ने झूमकर
सरसों के पास पहुँचना
और हवा के दम पर
चूमना चाहा ,
पर वह झुकी नहीं
और हवा ने भी टका-सा जवाब दिया
अपनी मंजिल पाने के लिए
किसी और का इस्तेमाल मत कर
सरसों से मिलना है तो
उसके बराबर की बात कर.
चना तब से लेकर अब तक
सरसों की लम्बाई से दूर है,
फ़िलहाल मटर संग उसकी कट रही है
और सरसों,
उसकी मटरगश्ती पर हँस रही है.

16 जनवरी 2013

तुम और हम !

तुमसे जितनी बार मिला हूँ,
नए रूप से यार, हिला हूँ !(१)

भरे सरोवर मुरझाया-सा ,
छोटे नद औ नार खिला हूँ !(२)
 

बीच समंदर डूबा-उतरा ,
लिए नाव-पतवार मिला हूँ !(३)

गम के घूँट न लगते कड़वे,
चोटों को हर बार सिला हूँ !(४)

तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ ! (५)
 

14 जनवरी 2013

बदलाव !


लोगों ने कहा

कपडे बदल लो

मैंने रंगरेज बदल लिया

लोगों ने कहा

चेहरे को सजा लो

मैंने आइना बदल लिया

लोगों ने कहा

धारा के साथ बहो

मैं पत्थर बन गया

लोगों ने कहा

तुम चुप रहो

मैं अगुआ बन गया

लोगों ने कहा

तुम गलत हो

मैं और मज़बूत हो गया

लोगों ने कहा

तुम कापुरुष हो

मैंने सबक सिखा दिया

लोगों ने कहा

वे नीति-निर्धारक हैं

खुद का मखौल बना लिया

13 जनवरी 2013

दर्द और बाज़ार !

दर्द अब निकलता नहीं

महसूसता भी नहीं,


उपजाया जाता है चेहरे पर

खेत में फसल की तरह

और काट लिया जाता है पकते ही .

नकली दर्द खबर बनता है

ऊँचे दाम पर बाज़ार में बिकता है,


उस पर और रंग-रोगन कर

परोस दिया जाता है

सभ्य समाज में चर्चा के लिए .

दर्द अब पीड़ा नहीं बनता

न ही मोहताज़ होता किसी हाथ का

अपने काँधे पर रखे होने का,

साहित्य का हिस्सा बनकर वह,

सम्मान-समारोहों में मालाएं पहनता है

इस तरह दुःख और दर्द को हम नहीं

बाज़ार भोगता है !

 

 

7 जनवरी 2013

दामिनी का अपनों के नाम सन्देश !



मेरे प्यारे भाई बहनों

मैं यहाँ आकर भी जीवित हूँ,जैसी मेरी इच्छा थी ।अब आप लोग भी अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गए होंगे।मैं आप सबको अपने प्रति बे-इन्तहा प्यार दिखाने के लिए आभार व्यक्त करती हूँ।गाँव से आई एक अकेली लड़की को पूरी दुनिया और देश का जो प्यार मिला, वह हमारे जीने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।मेरे मन में अब किसी के प्रति कोई विद्वेष या घृणा-भाव नहीं है।मेरे नश्वर शरीर का मरना यदि किसी मरते हुए समाज को जिंदा करने में सहायक है तो,ऐसी मौत के लिए मुझे फख्र है।जिन्होंने मेरे शरीर को नोचा-खसोटा,उनके लिए भी मेरे मन में सहानुभूति है।वे जब तक जियेंगे,हर पल मरेंगे ।हर क्षण वो मेरी आँखों की चमक महसूस करेंगे।वे मुझे भूल न सकें इसके लिए मैं सूरज की हर किरण,हवा की हर दस्तक के साथ,उनके आस-पास ही रहूँगी,झकझोरती रहूँगी ।

मुझे उन सबके परिवारों की भी बड़ी चिंता है।उन सबकी माँ-बहन-बेटियाँ कैसे दूसरों से नज़रें मिलाती होंगी ? मैं जानती हूँ कि अभी हमारी बहनों के आँखों में इतना पानी तो बचा होगा कि उसे वे उन अपनों पर उलीच सकें,जिनके आँखों की कोरें बिलकुल सूख चुकी हैं।मुझे अपने माँ-बाप के अलावा आप सबसे आंसुओं का इतना सैलाब मिला है कि मुझे नई ज़िंदगी मिल गई है।इसलिए आप सब मेरे न रहने का शोक न मनाएं वरन अब सोते-से जग जाएँ।मेरे अकेले के जीने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि मेरी बाकी बहनें चैन से रहें।शारीरिक रूप से तो मैं एक बार ही मरी हूँ,पर मैं चाहती हूँ कि उन्हें रोज़-रोज़ मानसिक तौर पर न मरना पड़े।

मेरे साथ जो हुआ,इसकी मुझे कोई शिकायत नहीं है।इसी बहाने कई बातें साफ़ हो गईं।जिस व्यवस्था में रहते हुए हम डरते रहे,मरते रहे,वह स्वयं डरी हुई और बड़ी कमज़ोर निकली।आप लोगों ने जिस व्यवस्था को बनाये रखकर उससे अपनी रक्षा का भ्रम पाल लिया था,वह चूर-चूर हो गया।मैंने देखा कि मुझसे हमदर्दी जताने आए लोगों पर यही व्यवस्था कहर बनकर टूट पड़ी।इसके लिए उसके भंडार-गृह से आँसू गैस के गोले और लाठियाँ तुरंत बाहर निकल आईं,जबकि आतताइयों के लिए इसी व्यवस्था को महीनों,सालों सोचना पड़ता है।मेरे साथ जो हुआ ,उसके प्रतिकार को तो यह सरकार तत्पर नहीं दिखी,पर हाँ,मेरी ओर आने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए गए।आप सबने दिखा दिया कि डरी हुई व्यवस्था एक जागे हुए समाज को कभी डरा नहीं सकती।

मैं तो एक प्रतीक मात्र थी।मुझे तो इस भौतिक शरीर को एक न एक दिन त्यागना ही था,पर इस व्यवस्था के द्वारा मेरा कत्ल किया जाना बहुत कुछ उघाड़ गया है।उस दिन किसी दामिनी के साथ नहीं,इस व्यवस्था के साथ बलात्कार हुआ था और लगातार हो रहा है।मैं गौरवान्वित हूँ कि इस बात को सबके सामने लाने का जरिया मैं बनी।कुछ लोग यह कह रहे हैं कि दामिनी मर गई है पर सच्चाई तो यह है कि उस दिन पूरे समाज की मौत हुई थी,जिसे एक कांधा भी नसीब नहीं हुआ।दामिनी न तो पहले डरी और न बाद में।हाँ,मैंने लाठी-गोलियों से लैस इस व्यवस्था को थर-थर काँपते ज़रूर देखा है।मुझे आप सबके निश्छल प्रेम पर पूरा भरोसा है और यह भी कि इस मरे हुए समाज में प्राण फूंकने का काम आप लोग ही कर सकते हैं।अब जब भी किसी बहन-बेटी के साथ कुछ गलत होता दिखे तो मुझे याद कर लेना ।यह दामिनी हमेशा आपके दिलों में यूँ ही धधकती और समाज को झिंझोड़ती रहेगी ।


हमारी ओर से ....

वह ज्योति थी
अँधेरे से इसलिए लड़ती रही
आखिर तक ज्वाल बन जलती रही,
वह है सभी ज़िन्दा शरीरों में
और हैवानों को जला देगी,
राख उसकी हड्डियों की
नरपिशाचों को गला देगी !