29 जनवरी 2011

बीबीसी की हिंदी सेवा !

दो दिन पहले ख़बर आई कि हम सबको सालों-साल  ख़बरदार करती आई बीबीसी की हिंदी सेवा बस चंद दिनों की मेहमान है.यह ख़बर शायद आज के ज़माने में एक हाशिये भर की ख़बर बन कर रह गयी है.प्रसारणकर्ताओं  ने धन की कमी का रोना रोया है. हो सकता  है की यह सेवा कमाऊ न रह गयी हो पर सार्वजनिक -हितों के लिए इसका ज़ारी रहना न केवल हिन्दुस्तान के लोगों के लिए अपितु विश्व-बिरादरी के लिए भी ज़रूरी है.

हम अपने बचपन को याद करते हैं, जब  शहर के भद्रजनों से दूर,अखबारी दुनिया से महरूम गाँव  के अधिकाँश लोग बीबीसी की हिंदी-सेवा का 'टैम' देखते रहते थे.जब कोई खास राजनैतिक घटना होती तो लोग झुण्ड बनाकर पूरा कार्यक्रम सुनते,और जो लोग नहीं सुन पाते वे दूसरों की जुबानी सुनते. लोग अपनी बहस में बीबीसी का हवाला भी देते.अब जबकि गाँव में संचार के आधुनिक साधन आ गए हैं, अखबार  भी पहुँचने लगे हैं,पुराने लोगों में बीबीसी का क्रेज़ जस-का-तस है !

बीबीसी की ख़ास पहचान बिना किसी पक्ष के,लाग-लपेट के निडर टिप्पणी अपने श्रोताओं तक पहुंचाने में है.कई अख़बारों का निचोड़ इसमें निकल आता है,साथ ही ज्ञान-विज्ञान व साहित्य सम्बन्धी समाचार भी इसकी ज़द में रहे हैं.इसका इतिहास कई महत्वपूर्ण रपटों से भरा पड़ा है.पत्रकारीय-जगत की कई महान हस्तियाँ यहाँ से जुड़ी व निकली हैं .

ऐसी संस्था ,जो इतने व्यापक स्तर पर समाजसेवा जैसा कार्य कर रही हो,उसे धनाभाव के कारण दम तोड़ना पड़े,बताता है कि मानव ने दर-असल किस तरह की विकास-यात्रा की है! आज हमारा सारा ध्यान अपने कोश को बढ़ाने में लगा है,भले ही इसके लिए हम अपने मानसिक आनंद को तिलांजलि दे दें ! ऐसी कोश-वृद्धि किस काम की जिससे लोगों को सुख व आनन्द न मिले ! इसका समाधान कोई व्यापारिक-समूह या भारतीय सरकार अगर करती भी है तो  उसके अपने हितों की कीमत पर होगा.


हम तो इसे बचाने के लिए बस एक ऐसी मौन-प्रार्थना कर सकते हैं,जो शायद उन तक पहुँच भी न सके जहाँ इसे पहुंचना चाहिए !

10 टिप्‍पणियां:

  1. यदि निष्पक्ष खबरें मिल रही हैं तो दुख होगा इसके बन्द होने से।

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  2. हम आपसे बिल्कुल सहमत हैं कि सार्वजनिक -हितों के लिए इसका ज़ारी रहना न केवल हिन्दुस्तान के लोगों के लिए अपितु विश्व-बिरादरी के लिए भी ज़रूरी है.

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  3. कुछ ही अखबार और चैनल हैं जो हमें निष्पक्ष खबरें देते हैं और वह भी नहीं रहेंगे तो खबरें पढ़ने या सुनने के बाद हमें संपादन भी करना पड़ा करेगा .

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  4. @प्रवीण पाण्डेय यह विडम्बना ही है कि हम अपने देश की राजनीति की सही नब्ज़ जानने के लिए दूसरे देश से संचालित प्रतिष्ठान पर निर्भर हैं !

    @मनोज कुमार अगर आप जैसे कुछ और लोगों की आवाज़ मिल जाये तो शायद कुछ हो सके !

    @सुशील दीक्षित और हाँ,अन्दर की ख़बरें हमें ही निकालनी पड़ेंगी !

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  5. महाराज करते रहिये मौन प्रार्थना ....और मन करें तो थोड़ा चिल्ला भी सकते हैं !

    मुझे लगता है चिंतन यह होना चाहिए कि -
    १- अब तक ऐसी कोई सरकारी या गैर सरकारी सेवा हम क्यों नहीं तैयार कर पाए ?

    २- कोई सेवा वह भी विदेशी क्यों कर आपके लिए हानि सहे वह भी आपके लिए ?

    ३- खबर निष्पक्ष ही हो तो क्या ? वाद -विवाद कैसे ?

    हमको तो केवल यही अफ़सोस है कि विविधता का एक अध्याय अब ना रहेगा .....और कई सारे हिन्दी मीडिया कर्मिओं की रोजी रोटी चली जायेगी |

    ...बस इससे ज्यादा कुछ नहीं !

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  6. @प्रवीण त्रिवेदी आज के समय में ,जहाँ हम अपनी सरकारों के किये-धरे पर केवल "मौन-प्रार्थनाएं" कर रहे हैं,वहीँ विदेशी प्रतिष्ठान से उम्मीद बेमानी ही है.
    मेरी चिंता केवल इत्ती-भर है कि ऐसी किसी भी संस्था का छीजन समाज के लिए हानिकर है,जो सामाजिक सरोकारों से जुडी हुई हो !

    रही बात कुछ के बेरोजगार होने की, तो उन्हें काम तो कहीं न कहीं मिल जायेगा,पर वे उस 'जुनून' से वंचित रहेंगे,जिसे उन्होंने बीबीसी में रहते जिया है !

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  7. बीबीसी की हिंदी सेवा के प्रसारण बंद होने की खबर.
    किशोरावस्था की जाने कितनी यादें. कडकडाती सर्दी वाली शाम. जलते अलाव के आसपास बैठे कई लोग. कान रेडियो पर. यह बीबीसी लन्दन है.विश्वसनीय ख़बरें.समाचार वाचको की खास शैली.गाव का एक लड़का बीबीसी लन्दन का ऐसा दीवाना था कि लोगों ने उसका नाम ही बीबीसी लन्दन रख दिया था.
    बीबीसी की हिंदी सेवा के प्रसारण बंद होने की खबर चिंताजनक है.
    आपने सच ही लिखा कि ऐसी संस्था ,जो इतने व्यापक स्तर पर समाजसेवा जैसा कार्य कर रही हो,उसे धनाभाव के कारण दम तोड़ना पड़े,बताता है कि मानव ने दर-असल किस तरह की विकास-यात्रा की है!
    कथित विकास में बहुत कुछ अच्छा और सच्चा पीछे छूटने लगा है.

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  8. बीबीसी की हिंदी सेवा के प्रसारण बंद होने की खबर चिंताजनक है|

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  9. @ संतोष पाण्डेय सही कह रहे हैं आप ! बचपन में जो भी उत्सुकता रहती थी उसे बीबीसी ने उम्मीद से ज़्यादा पूरी की !

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